JMM Party
झारखंड की राजनीति में पिछले कुछ महीनों में हलचल मच गई है। एक पार्टी, जिसने राज्य को उसके अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया, आज अपने ही नेताओं से कमजोर होती नजर आ रही है। क्या झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) टूट रही है? क्या ये पार्टी अपने बिखराव को संभाल पाएगी? या फिर यह सब हेमंत सोरेन (Hemant Soren) के मजबूत नेतृत्व की नई चाल है? चलिए, इस वीडियो में जानते हैं कि JMM की स्थिति आखिरकार कैसी है। पूरी कहानी का सच सामने लाते हैं!”
झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) का गठन 2 फरवरी 1973 को हुआ था। इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा करना और झारखंड को एक अलग राज्य बनाना था। JMM की स्थापना बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन और कॉमरेड डॉ. एके रॉय ने की थी। शुरूआती दौर में बिनोद बिहारी महतो पार्टी के अध्यक्ष और शिबू सोरेन महासचिव बने. लेकिन इस समय तक शिबू सोरेन आदिवासी समाज के उभरते हुए नेता बन चुके थे. झारखंड मुक्ति मोर्चा को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता 1989 के बाद मिली, जब पार्टी ने लोकसभा चुनाव में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की थी। उस चुनाव में जमशेदपुर, दुमका, और राजमहल सीटों से जेएमएम के तीन उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी। इसके बाद पार्टी की राजनीतिक पहचान मजबूत हुई और उसे राष्ट्रीय मान्यता मिली।
हालांकि, इसके पहले 1977, 1980 और 1985 के चुनावों में पार्टी ने अपने तीर-धनुष चुनाव चिन्ह को मान्यता दिलाने की कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली थी। 1989 के बाद ही JMM को अपने चुनाव चिन्ह के साथ पूर्ण मान्यता प्राप्त हुई.
लेकिन 1980 में यह पार्टी टूटकर दो गुटों में बट गई. जिन तीन लोगों ने मिलकर यह पार्टी को बनाया था 1980 के आम चुनाव में ये अलग हो गए. JMM ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने का फैसला किया. जिससे बिनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन के बीच मतभेद हो गया और पार्टी दो गुटों में बंट गई। एक गुट के अध्यक्ष बिनोद बिहारी महतो और महासचिव टेकलाल महतो बने, जबकि दूसरे गुट के अध्यक्ष निर्मल महतो, महासचिव शिबू सोरेन, और उपाध्यक्ष सूरज मंडल बने। हालांकि, यह विभाजन ज्यादा दिनों तक नहीं चला और 1987 में निर्मल महतो की हत्या के बाद दोनों गुट फिर से एक हो गए।
अब जब पार्टी को 1989 में राष्ट्रीयक मान्यता मिली. तब 1991 के आम चुनाव में पार्टी ने 6 लोकसभा सीटें जीती. जिनमें दुमका से शिबू सोरेन, गिरिडीह से बिनोद बिहारी महतो, गोड्डा से सूरज मंडल, जमशेदपुर से सिलेंड्र महतो, राजमहल से सइमन मरांडी और सिंहभूम से कृष्णा मरांडी थे.
लेकिन इस बीच 1991 में ही बिनोद बिहारी महतो का निधन हो गया, जिसके बाद उनके बेटे राजकिशोर महतो गिरिडीह से सांसद बने। पिता के मौत के बाद राज किशोर महतो को यह महसूस हुआ कि जेएमएम के भीतर उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं मिल रहा है, और पार्टी में उनकी भूमिका सीमित हो गई थी। राज किशोर महतो और शिबू सोरेन के बीच मतभेद बढ़ने लगा । जिसके चलते उन्होंने पार्टी से अलग होने का निर्णय लिया और इस तरह एक बार फिर जेएमएम पार्टी का विभाजन हुआ और राजकिशोर महतो व कृष्णा मारांडी ने मिलकर नया गुट बना लिया. इधर पार्टी में खट पट चल ही रही थी और इसी बीच पार्टी को एक बड़ा झटका लगा. शिबू सोरेन, सूरज मंडल और शैलेंद्र महतो जैसे नेता जेएमएम रिश्वत कांड में फंस गए, जिससे पार्टी को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा.. साथ ही JMM की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर नुकसान भी हुआ.
और इसका परिणाम 1996-98 के आम चुनाव में देखने को मिला. JMM 12 सीटों पर चुनाव लड़ती है जिसमें वे मात्र एक सीट ही जीत पाते है वो भी दुमका सीट से शिबू सोरेन..इससे साफ पता चलता है कि पार्टी के नेताओं के घोटाले और विभाजन ने JMM को कमजोर कर दिया था.
विभाजन के बाद क्या रही JMM की स्थिति
15 नवबंर 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बनने के बाद, जेएमएम ने 2005 में पहली बार झारखंड विधानसभा का चुनाव लड़ा। नए राज्य में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद के बावजूद, 49 सीटों पर लड़ते हुए वे केवल 17 सीटें जीत पाए। जिसके बाद गठबंधन कर शिबू सोरेन ने सरकार बनाई, लेकिन कुछ ही दिनों में बहुमत के अभाव में उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
जिस मकसद से जेएमएम ने राज्य निर्माण किया था उसे पुरा करने में असफल रहे. और यहीं वजह रही है कि पार्टी लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने में नकाम रही. 2004, 2009, 2014, 2019 और 2024 के आम चुनाव में करीब 2 या 3 सीटों में ही पार्टी सिमट गई. वहीं विधानसभा चुनाव में इनका प्रदर्शन भी उतनी अच्छी नहीं है. राज्य में कुल 81 विधानसभा सीट है. जिसमें वे अबतब 20 से कम सीट ही ला पाए है. लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया और 30 सीट लाकर इंडी गठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाई. लेकिन राज्य में इस पार्टी से मुख्यमंत्री के बात करे तो मात्र तीन ही मुख्यमंत्री बन पाए है. जो कभी स्थिर नहीं रह सके. साथ ही पांच साल का कार्यकाल इनके पार्टी से कोई भी पूरा नहीं कर पाया है.
JMM पार्टी से अब तक कितने बने CM
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, फिर उनके बेटे हेमंत सोरेन भी दो बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। लेकिन जेएमएम को एक बड़ा झटका तब लगा जब जमीन घोटाले में मामले में हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। गिरफ्तारी के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन, जो शिबू सोरेन के काफी करीबी माने जाते है, उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। तीन महीने तक चंपई सोरेन ने सरकार चलाई, लेकिन इसी बीच हेमंत सोरेन की भाभी गीता सोरेन ने पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो गई. पार्टी और परिवार के विवादों कारण गीता सोरेन ने पार्टी छोड़ा था. और 2024 के आम चुनाव में जेएमएम के खिलाफ चुनाव लड़ा.
इस बीच हेमंत सोरेन जेल से बाहर आ गए और चंपई सोरेन से इस्तीफा दिलाकर फिर से मुख्यमंत्री बन गए। इस कदम से पार्टी के भीतर असंतोष की भावना और बढ़ गई। विपक्ष ने इसे परिवारवाद का मुद्दा बनाया और इसका परिणाम यह हुआ कि चंपई सोरेन ने पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। चंपई सोरेन का आदिवासी क्षेत्रों में काफी प्रभाव है और उनका पार्टी छोड़ जाना आने वाले चुनावों में जेएमएम को बड़ा नुकसान पहुँचा सकता है।
झारखंड में अगले 2 महीने में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। क्या JMM इन चुनावों में अपनी ताकत साबित कर पाएगी, या फिर बीजेपी की मजबूत रणनीति के आगे कमजोर हो जाएगी? क्या हेमंत सोरेन का नेतृत्व इस पार्टी को बचा पाएगा? ये सारे सवाल इन चुनावों के नतीजों के बाद साफ होंगे। आप इस बारे में क्या सोचते हैं, कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं